देश के बड़े उद्योगपतियों में से एक “रतन टाटा” अब हमारे बीच नहीं रहे, मुंबई के ब्रिज कैंडी हॉस्पिटल में उन्होंने अंतिम सांस ली।
उनके निधन से देश में हर कोई शोक और अफसोस में हैं, उनका जाना न केवल टाटा ग्रुप के लिए बल्कि देश के लिए भी एक अपूरणीय क्षति है।
रतन नवल टाटा का जन्म साल 1937 में मुंबई में हुआ था। वो अपने कारोबार से इतर सोशल मीडिया पर लोगों के बीच एक नेक दिल इंसान की छवि रखते थे, उनके बारे में सुहैल सेठ (भारतीय व्यवसायी और स्तंभकार) ने एक किस्से का ज़िक्र करते हुएबताया था कि ब्रिटेन के प्रिंस चार्ल्स 2018 में उनको लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड देने वाले थे, रतन टाटा ने इस ईवेंट में अपने शामिल ना होने की सूचना प्रोग्राम के आयोजकों यह बताते हुए दी थी कि उनके दो पालतू कुत्ते टीटो और टैंगो बीमार है जिनको छोड़कर वो नहीं आ सकते हैं। इस किस्से को पढ़कर आप उनके नेक दिल व्यक्ति होने की वजह जान सकते हैं।
ग़ैर, रतन जी दिल के बड़े इंसान तो थे ही, अपने कारोबार को नई ऊंचाईयों पर लेकर जाने में भी उनका एक अहम योगदान रहा है। साल 1991 से 2012 तक टाटा संस के अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने ना केवल हर ग्रहणी को “देश का नमक” दिया बल्कि दो पहिया वाहन पर बारिश में भीगते हुए एक मध्यमवर्गी परिवार के लिए नैनो जैसा सपना साकार किया। हर वो व्यक्ति जिसके लिए महंगी कार अफोर्ड कर पाना मुश्किल था नैनो के आने से वो कार के मालिक बन सका।
टाटा ग्रुप के प्रमुख ब्रांड जैसे एयर इंडिया, टीसीएस, टाटा मोटर्स, टाटा नमक, टाटा चाय, जगुआर लैंड रोवर, टाइटन, फास्ट्रैक,तनिष्क, स्टारबक्स, वोल्टास, ज़ारा, वेस्टसाइड ,कल्टफिट,टाटा वन एमजी नाम शामिल हैं।
एक उद्योगपति के लिए पैनी नज़र और पीछे एक बड़ी टीम के सपोर्ट का होना ही जरूरी नहीं है, क्योंकि बिजनेस करने वाले और उसको बुलंदी तक ले जाने वाले लोग भी बहुत होते हैं पर एक विश्वास और भरोसा है जो दूर तक साथ चलकर कामयाब होने के गारंटी देता है,जिस सहेजता और प्रेम से रतन टाटा ने अपने कर्मचारियों पर विश्वास किया वो अपने आप में एक मिसाल है। शायद यही वजह है कि आज भी लोगों का एक कस्टमर के तौर पर जो यकीन टाटा पर बरसों पहले हुआ करता था वो आज भी कायम है।
।नमन।